

भई
मिसाइल, गोली बन्दूक जैसे हथियारों का निशाना भले ही चुक जाए पर जूते का निशाना
हमेशा सटीक बैठता है, चोट शरीर पर लगे ना लगे प्रतिष्टा पर आंच जरुर ही आता है।
जूते ने अपना कमाल दिखाया है, जूते की बदौलत ही एक टीवी पत्रकार दुनिया में हीरो बन गया। सोचता हूँ मेरे जैसे कितने ही टीवी पत्रकारों के जूते रोज रोज फोकटिया न्यूज़ के चक्कर में घिस रहे हैं, कम से कम मैं तो किसी को अपने आठ नम्बर के जूते की फटी सोल से इज्जत दूँ। मानता हूँ मुझे अंकल सैम ना मिले पर हमारे अगल बगल भी तो कितने मामू लोग बैठे हैं । बल्कि ये मामू तो और भी सुलभ हैं कदम कदम पर मिल जाते हैं । आज कल मामू लोग आतंकवाद के खिलाफ मुहीम चला रहे हैं, जनता की सुरक्षा की चिंता इन्हे खाए जा रही है, वैसे वे जनता का बहुत कुछ जनवादी और जनसेवक होने की वज़ह से खा चुके हैं। मामू भी सुरक्षित रहे इसके लिए उनकी सुरक्षा भी बढ़नी जरुरी है,ऐ प्लस -बी प्लस और सी प्लस से काम नही चलेगा कम से कम जेड प्लस और कुछ कमांडो तो जरुरी है खैर भाई ये सब तो उनका हक़ है। पर हमारा भी हो फ़र्ज़ बनता है ना की मामू की इस सेवा का कुछ तो अदा करे जैदी से थोडी सीख मिली सोच रहा हूँ मामू को भी जूते की महिमा से परिचित कराया जाए।
अखिलेश ने अपनी ब्लॉग www.humaap.blogspot.com पर नेताओं को चुनने के जानता के मापदंड की बात रखी है ......पेश है उनकी भावनाओं की एक बानगी ....
अभी पुरे देश में जनता नेताओ को गालिया दे रही है। आतंकियों की ही तरह नफरत वैसे नेताओ के प्रति भी है जो संकट की इस घड़ी में भी अपनी वोट बैंक और सियासत में नफा नुकसान को लेकर राजनीति करते रहे। लेकिन हम सभी को एक सवाल अपनी अंतरात्मा से भी करनी चाहिए की इन नेताओ को नेता बनाता कौन, अपने जनप्रतिनिधियों को चुनने के लिए हम कौन सा मापदंड तय करते हैं? नेता को 'ने' मतलब- नेतृत्व और 'ता' मतलब - ताकत जनता जनार्दन से ही मिलती है ऐसे में अगर हम ग़लत लोगो को चुनते हैं तो उन लोगो से कुछ बेहतर करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। चुनाव के दिन तथाकथित पढ़े लिखे लोग वोट करने नही जाते, उन्हें लम्बी कतारों में आमजनों के साथ खड़ा होना नही भाता। पर यही बुद्धिजीवी बाद में देश के हर मुद्दे पर बड़ी बड़ी बातें करते है। युवा देश की तस्वीर बदलने की ताकत रखता है, कहते भी हैं जिस ओर युवा चलता है उस ओर ज़माना चलता है, लेकिन युवाओं की फौज कभी पेट्रोल तो कभी दारू के चक्कर में धन्धेबाज़ नेताओ के आगे पीछे घुमती नज़र आती है। अलग-अलग दलों के चुनावी रैलियों में कई बार सामान समर्थक नारे लगते नज़र आते हैं, पैसे पर जनता की भीड़ जुटाई जाती है। अब जब जनता ही अपने अधिकारों के प्रति सजग नही होगी तो भला नेताओ से उम्मीद कैसे की जा सकती है । हम जिसे नेता चुनते हैं उसके चल चरित्र को समझना अत्यन्त ही जरुरी है । हम वोट करे तो उन्हें करे जो जाति,धर्म, क्षेत्र , भाषा के मुद्दे पर हमे उलझाय ना रख कर हिंदुस्तान को सुदृढ़ और विकसित करने का विजन रखे॥ पर इसके लिए हमे ख़ुद को बदलना होगा....एक उम्मीद के साथ..आप का साथी...
इस बार ये हलचल मचाई है समीर का ब्लॉग www.chitthii.blogspot.com
इस बार की चिट्ठी है आवाम के नेताओ के नाम और आवाज़ है पूरे हिंदुस्तान की । मुंबई पर आतंकी हमलों ने देश को हिलाकर रख दिया है। ये घटना न तो पहली बार थी न ही आखिरी । जाने कितनी बार आतंकियों ने देश के विभिन्न हिस्सों को अपना खुनी निशाना बनाया लेकिन हर बार भारत का ही सीना छलनी हुआ है। अब ये बात बिल्कुल साफ़ हो चुकी है की इन नेताओ के भरोसे आतंकवाद से लड़ना मुश्किल हो गया है।लेकिन आतंकवाद जैसे सवालात पर देश के सियासी नेता क्या सोचते है॥ ज़रा आप भी गौर फरमाइए।
शिव राज पाटिल (पूर्व केन्द्रीय गृह मंत्री ) कार्यकाल के दौरान देश पर आतंकी हमले होते रहे और जनाब सूट पर सूट रहे। मुंबई हादसे के बारे मे सही जानकारी नही थी। जिसके चलते टीम देर से हरकत मे आई।
लाल कृष्ण आडवाणी (विपक्ष के नेता) हमलोग साथ में (यूपिये) आना चाहते थे। लेकिन वे लोग शायद कल आयें तो मैं आज ही सबसे पहले पहुच गया।अरे आडवाणी साहब कम सेs कम इस मुद्दे पर तो आरोप प्रत्यारोप की होली खेलना बंद करो । । क्युकी जनता इन मामलो पर राजनीति न सुनना पसंद करती है न देखना। वो इन सारे मसालों का चाहती है स्थायी समाधान।
अच्युतानंदन (सी एम केरल) मैं मेज़र संदीप के घर सहानुभूति जताने गया था। अगर संदीप शहीद नही होते तो कोई कुत्ता भी झाँकने नहीं जाता।
मुख्तार अब्बास नक़वी (नेता बीजेपी) लिपस्टिक और पाउडर लगाकर मोमबत्ती के साथ विरोध नही किया जाता। पश्चिमी सभ्यता के साथ पोलिटिशियन को गाली मत दो।
विलासराव देशमुख (मौजूदा मुख्यमंत्री महाराष्ट ) मुंबई मे हमले पर हमले होते रहे और देशमुख जी चुप्पी साधे रहे मानो उन्हें सांप सूंघ गया हो। व्यवस्था बनाये रखने मे पूरी तरह विफल।
आर आर पाटिल (पूर्व उप मुख्यमंत्री महाराष्ट ) बड़े बड़े शहरों में छोटी छोटी बातें हो जाया करती है।
नरेन्द्र मोदी (मुख्यमंत्री गुजरात ) कुछ हफ्ते पहले साध्वी प्रज्ञा ठाकुर मामलों पर ऐ टी एस को अपना निशाना बनने और देशद्रोही जैसे संगीन आरोप लगाने वाले मोदी इस हमलो मे मारे गए ऐटीएस जवान और चीफ को १ करोड़ का सियासी लालीपॉप थमाने मुंबई पहुँच गए। लेकिन कविता करकरे का इसे लेने से इंकार।
शिबू सोरेन (मुख्यमंत्री झारखण्ड ) हमारे राज्य मे ताज और ओबेरॉय जैसा होटल नहीं है जो आतंकी हमला हो।
राम बिलास पासवान (लोजपा नेता ) रांची मे एक बड़ी सभा को भाषण बाजी करते रहे । एअरपोर्ट पर एक साथ उनका और इस हमले मे मारे गए मलयेश का शव उतरा। लेकिन उन्हें संवेदना व्यक्त करने तक की फुर्सत नही थी।
प्रकाश जावारेकर (नेता बीजेपी) एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू मे कहा की मुझे तो आपके चैनल ने आतंकवाद पर चर्चा के लिए बुलाया। लेकिन इस मुद्दे पर पूछे गए हर सवाल पर गोल मटोल बातें करते रहे।
सांसद (यूपी ) दो दिन बैठकर मैंने वहां एन्जॉय किया। मैंने चुनावी रणनीति तय की अपने लैपटॉप पर।
बकौल मेज़र जेनरल आर एल क्लात्बक - शासन व्यवस्था से विश्वास उठ जन आतंकवाद की पहली और सबसे बड़ी जीत है।
एन डी टीवी को नेताओ के प्रति नफरत और घृणा से भरे दो लाख एस ऍम एस मिले हैं।
एक सर्वे मे ८६ फीसदी लोगो का मानना है की नेतागण इस हमलो को रोकने मे पूरी तरह नाकाम रही है।
ये हमारी राजनीति व्यवस्था की विडम्बना ही है की ये नेता देशवासियों में उम्मीद जगाने मे असफल रहे। नेताओ होशियार। जनता जागने लगी है मुंबई हादसों पर उसकी प्रतिक्रिया सिर्फ़ एक बानगी है सब्र के फूटते पैमानों का। इससे पहले की हालत बेकाबू हो जाए संभाल लो अपना दामन। आमजनों और बेक़सूर की कीमत पर देश को दांव पर लगाने का खुनी खेल अब बंद करना होगा। अगर ये अपने मुंह पर लगाम नही लगा सकते तो देश क्या चलाएँगे। सियासत के लोग अगर इस दिशा मे कुछ ठोस कदम नही उठाएँगे तो जनता को ही इन्हे सबक सिखाने को आगे आना होगा। क्यूंकि अगर जनता जाग गई तो ये नेतागण कभी चैन की नींद नही सो पाएंगे।
एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।
गरीबों के गरीबी को याद दिलाती है ।
दर्द भरी ऑंखें भूखे पेट दिल जलती है ।
एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।
एक चेहरा जो मुझे आज भी आँखे दिखाती है ।
तन पे फटे कपड़े कचडे का बोझ बस यही बताती है ।
एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।
निराशा में आशा की जोत जलाती है ।
क्यों इंसानों के पास गरीबी आती है ।
एक बात जो मुझे आज भी सताती है ।
पत्रकार मित्र धीरेन्द्र पाण्डेय की प्रस्तुति .........
पिछले दिनों अमेरिका के इतिहास में जो परिवर्तन आया वह शायद इसके बाद देखने को नही मिलें। लेकिन इस परिवर्तन ने व्हाइट हाउस में एक ब्लैक शख्स को जरूर ला खड़ा किया है जो बिश्व के सबसे ताकतवर देश का राष्ट्रपति होगा । कहा जाता है इतिहास दबे पाव आता है और उसके गुजर जाने के बाद इतिहास का प्रभाव शताब्दियों तक रहता है । बराक ओबामा के विजय होने से अमेरिका में वर्षो से चली आ रही श्वेत और अश्वेत के बीचपनपी खाई पाटने की पुरी संभावना है । मार्टिन लूथर किंग का सपना "मेरा सपना है की मेरे चार छोटे बच्चे एक इसे देश में रहेंगे ,जहाँ उन्हें उनकी त्वचा के रंग से नही बल्कि उनके चरित्र के आधार आँका जाए "यह सच साबित होता नजर आने लगा है ।किंग के जीवित रहते तो यह सपना पुरा नही हो पाया लेकिन यह सपना लाखों अमेरिकियों का सपना बन गया , यह सपना सच हहा ५ नवम्बर को जब एक अफ्रीकी अमेरिकी बराक ओबामा अमेरिका के ४४ राष्ट्रपति के रूप में चुने गएँ ।इसे लिखने का मेरा मकसद यह है की अमेरिका तो अब श्वेत और अश्वेतों की लडाई से बहुत ऊपर उठ चुका है और शायद यही वजह रही की आज अमेरिका रुष जैसे प्रान्तिये राजनीती से ग्रस्त ताकतवर देश को भी पीछे छोड़ते हुए विश्व के मानचित्र में सबसे ताकतवर देश के रूप में आ खड़ा हुआ । वहीँ आज हमारा देश जातिगत के जाल में इस कदर उलझा हुआ है की यहाँ की जातिगत पार्टियाँ बड़ी पार्टियों पर भी भारी पड़ती है । और शयद यही वजह है की सरकार चाह कर भी देश हित में कोई कदम उठा नही पाती है । अगर हम भी अमेरिकियों से सबक लेते हुए जातीय भेदभाव को भूल देश की उन्नति और प्रगति के बारे में सोचें ।
देखना है की क्या यहाँ की इतिहास भी बदलेगी ?