11/21/08

इन रिश्तो का क्या कहना

इन रिश्तो का aक्या कहना । कब कहां और किससे बन जाए। कुछ दिन बीते हैं हाल -हाल तक 'ना उमर की सीमा हो ना जन्मो का हो बंधन' के राग अलाप कर बड़े बुजुर्गो और नौजवानों के बीच प्यार के रिश्तो पर बहस छिडी थी। खैर प्यार करने का हक सब को है चाहे वो बुजुर्ग हो या नौजवान । लेकिन कोई दादा या दादी बनने के उमर में नैन मटका करे तो ये थोड़ा अजीब लगता है। पर भई अब हमारी दुनिया में लोग रिश्तो की नई इबारत लिखने में लगे हैं।
बहुत पुरानी एक कहावत भी है रिश्ते रब बनाता है । जोडिया ऊपर वाला तय करता है । तबसवाल ये उठता है आज के आधुनिक परिवेश में ऊपर वाला भी कैसे -कैसे रिश्ते बनाने लगा है ? समलैंगिको की जमात क्या रब ही बनाता है। मर्द मर्द के पीछे भागने लगा है, औरत को औरत से ही प्यार होने लगा है। और तो और इस तरह के रिश्तो की वकालत भी लोग करने लगे हैं , ज़रा सोचिए क्या ऐसे रिश्ते सही है। ये ना सिर्फ़ प्रकृति के नियमो के खिलाफ है बल्कि मर्यादा के अनुकूल भी नही है। सिर्फ़ आधुनिकता के नाम पर पाश्चात्य संस्कृति का पिछलगू बनना हमारे लिए निहायत ही ग़लत है। अभी फ़िल्म दोस्ताना में दो लड़के सिर्फ़ इस लिए गे बनते हैं क्यूंकि उन्हें किराये पर घर चाहिए। फैशन जगत में भी कई समलैंगिक लोग हैं जो मात्र स्वार्थ के लिए ऐसे रिश्ते बनाते हैं । हाल ही में मेरठ की समलैंगिक प्रियंका- अंजू जिन्होंने अपने माँ बाप का कतल का आरोप है के पीछे भी करोडो की सम्पति का खेल है......खैर अच्छा होगा इन रिश्तो को सही ना ठहराया जाए...इन रिश्तो के पीछे की सच्चाई जो हो लेकिन कहीं ना कहीं स्वार्थ का भी एक खास स्थान होता है ।
अखिलेश के ब्लॉग http://www.humaap.blogspot.com/ से साभार .......

1 comment:

राजीव करूणानिधि said...

parkha hai lahu apna, parkha hai zamane ko, tufaan me bhi na aaya koi bachane ko..
aise ho chuke hain apne rishte... to naye mera matlab hai iss tarah ke rishte to banenge hi...
sab waqt ki baat hai...badal raha hai, badalne dijiye..samandar ke dhare ko mat rokiye