इस बार की चिट्ठी आई है ऑफ़ साइड के भगवान, सौरव चंडीदास गांगुली के नाम और लिखा है हिंदुस्तान ने।
विदाई की भावुक नमी में जीत का एक चम्मच शक्कर घुल जाये तो यही होता है। पनीली भावनायें मीठी हो जाती है और आसमां थोड़ा और झुककर पलकों पर बैठा लेने को बेताब। जी हाँ ये भारतीय क्रिकेट के महाराज की विदाई है कोई खेल नहीं। विदाई जीत के उस दादा की जो ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में पीटकर आता है। अंग्रेजों के भद्र स्टेडियम में अपने जज्बात दबाता नहीं बल्कि साथियो के चौकों और छक्कों और टीम की जीत पर टी शर्ट उतारकर हवा में लहराता है। जिसकी रहनुमाई में १४ खिलाडियो का समूह 'टीम इंडिया' हो जाती है। जो जीते गए मैचों की ऐसी झडी लगाता है की बस गिनते रह जाओ। जो 'टीम ''निकाला मिलने'' पर टूटता नहीं है। लड़ता है। समय का पहिया घूमता है और प्रिन्स ऑफ कोलकाता की टीम में वापसी होती है। भारतीय क्रिकेट का ये फाइटर शतक और दोहरे शतक के साथ सलामी देता है।
करीब डेढ़ दशक तक खेल प्रेमियों के दिलोदिमाग पर दादागिरी करने वाले बंगाल टाइगर ने भारतीय क्रिकेट की कमान उस वक़्त संभाली जब हर तरफ अँधेरा था। राह नहीं सूझ रही थी। ये लार्ड ऑफ द विन भारतीय क्रिकेट के सव्यसाची थे । जिन्होंने टीम ही नहीं खेलभावना को पराजय और अवसाद के अंधेरो से बहार निकाल कर बड़े बड़े मैदान में विजय पताका फहरायी। निराशयों के बीच आशा की नई किरण तलाशने की सीख सौरव ने ही टीम इंडिया को दी।
सौरव गांगुली का आना , उसका होना, और उसका जाना हमारे जेहन में हमेशा तरोताजा रहेगा। भारतीय क्रिकेट के परिवर्तन के सूत्रधार के रूप में सौरव सदा याद किये जाएँगे।
इस ग्रेट वारियर को खिलाडी के तौर पर अंतिम सैल्यूट..... ।
धन्यवाद....
3 comments:
दादा पर पिछले दिनों जो दबाव रहा... उसके बीच उनकी सम्मानजनक विदाई भी हालांकि दुखी कर रही है। आपके लेखन में फ्लो है, शुरूआत अच्छी थी और अंत भी।
narayan narayan
ye sab waqt ka khel hai...aaj yahi DADA sabko pyare lag rahe hai...aur kabhi wo bhi waqt tha jab DADA ko log team ka bojh samajhte the...Khair aapki lekhni achchi hai..koshish jaari rakhiye
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