9/26/09

भारतीय टेलीविजन के 50 साल का सफ़र

भारतीय टेलीविजन के 50 साल का सफ़र
टेलीविजन ने 50 साल पूरे कर लिए हैं। 15 नवम्बर 1959 का वह साल था जब भारत में टेलीविजन ने कदम रखा. पहला कदम छोटा था, लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि छोटे छोटे क़दमों से चलने वाला यह उद्योग एक दिन विश्व बाज़ार को समेटने का माद्दा रखेगा. हालांकि टेलीविजन का आविष्कार 1923 में ही हो गया था, लेकिन इसका सार्वजनिक प्रसारण 1938 से शुरू हुआ. भारत में टेलीविजन 15 सितम्बर 1959 में आया. शुरूआती दौर में इसकी गति काफी धीमी रही. उस वक़्त इसका प्रसारण दिल्ली तक ही सीमित था. सप्ताह में दो बार एक एक घंटे के लिए प्रसारण होता था. चाल इतनी धीमी थी कि टेलीविजन को दिल्ली से मुंबई आने में बीस साल लग गए. 1982 का वह वर्ष था जब भारतीय टेलीविजन रंगीन हुआ. 7 जुलाई 1984 में भारत का सबसे पहला धारावाहिक "हमलोग" का प्रसारण दूरदर्शन ने किया जो 163 एपिसोड का था. ये देश का पहला शॉप ऑपेरा था. प्रणय राय और विनोद दुआ की जोड़ी द्वारा प्रस्तुत की गई चुनाव विशलेषण ने समाचार की धारा ही बदल दी. भारतीय टेलीविजन की शुरुआत दूरदर्शन के साथ हुई. 1990 के बाद भारत में निजी चैनलों ने करवट लेनी शुरू की और भारत विकास की एक नई यात्रा पर चल पड़ा. भारतीय टेलीविजन के शुरूआती दौर में एक मात्र चैनल दूरदर्शन था. दूरदर्शन ने अपने शैशव काल में प्रसारण को लेकर काफी दिक्कतों का सामना किया. अक्सर दूरदर्शन का प्रसारण एक या दो घंटे के लिए बंद हो जाया करता था. कारण था, उस वक्त टेक्नोलॉजी इतनी विकसित नहीं थी. प्रसारण बंद होने के बाद शास्त्रीय संगीत की मधुर धुन बजने लगती थी. भारतीय टेलीविजन में एक ऐसी आवाज है जो तब से लेकर आज तक जीवित है. "मिले सुर मेरा तुम्हारा" की धुन ने दूरदर्शन को एक खास पहचान दी. यह धुन लोगों के जुबान पर चढ़ गई. यह बात भी सही है कि देश का पहला टेलीविजन चैनल दूरदर्शन हमेशा सरकारी आकाओं का गुलाम रहा. जो आज भी है, भारतीय टेलीविजन में समय के साथ बदलाव भी आता गया. हफ्ते में दो दिन एक-एक घंटे चलने वाला कार्यक्रम आज 24/7 हो गया. आज ना तो टेलीविजन का प्रसारण बंद होता है और न ही उबाऊ प्रोग्राम देखने को मिलता है. आज देश में लगभग 417 चैनल चल रहे हैं, जो अलग-अलग फ्लेवर और कलेवर में उपलब्ध हैं. आप अपनी मर्जी के प्रोग्राम का लुत्फ़ उठा सकते है. टेलीविजन के आने से सूचनाओं की गति काफी तीव्र हो गई. आज देश-दुनिया की खबरें रिमोट के एक बटन में मिल जाती हैं. साउंड के साथ विजन की यह टेक्नोलॉजी ने पूरे विश्व को ग्लोबल विलेज में तब्दील कर दिया है. जिस तरह सिक्के के दो पहलू हैं. ठीक उसी तरह टेलीविजन के भी दो पहलू हैं. एक ओर जहाँ यह हमें ज्ञान-विज्ञान, शिक्षा-मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराते हैं. वहीं इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं. टेलीविजन बाज़ार तंत्र की ओर बढ़ने लगा है. पहले जहाँ टेलीविजन परिवार के सदस्यों के साथ बैठ कर देखा जाता था, वहीं आज कई ऐसे प्रोग्राम है जो मर्यादा की सारी हदें लाँघ रहा है. हम कह सकते हैं कि टेलीविजन आज ड्राइंग रूम से होकर लिविंग रूम में चला गया है. टेलीविजन में आपत्तिजनक प्रोगाम पर आवाजें उठी हैं. कई वर्गों ने तो फिल्म उद्योग की तरह इसपर भी सेंसर लगाने की मांग की है. लेकिन यह विडंबना ही कहें कि सूचना प्रसारण मंत्रालय के गठन होने के बावजूद यह आज भी अपने अस्तित्व की तलाश में है. इसके पास मंत्रालय तो है लेकिन प्रसारण से संबंधित अधिकार नहीं. कारण है, राजनीतिक पार्टियों के हांथों की कठपुतली होना. बहरहाल हर अच्छे चीज के साथ बुराई जुडी होती है. फिर भी हमें गर्व है कि आज भारतीय टेलीविजन पूरे विश्व में एक अलग पह्चान बनाने में कामयाब रहा है.

2/25/09

राजनिति का अपराधीकरण

राजनिति का अर्थ होता है राज्य से सम्बंधित नीति अथार्त वह नीति जिससे राज्य का संचालन होता है। यहाँ नीति का सम्बन्ध नैतिकता अथार्त नैतिक मूल्य से है। इससे स्पष्ट होता है कि राजनीति नैतिक मूल्यों पर आधारित एक ऐसी व्यवस्था है राज्य को सुचारू रूप से संचालन के लिए बनाईं जाती है। प्राचीन काल कि राजनीति की बात करें तो वह भी निरंकुश नही थी , उस पर भी धर्म का अंकुश रहता था। राष्ट्रपति गाँधी जी नैतिक मूल्य पर आधारित राजनीति के पक्षधर थे, और वे राजनेताओं के पवित्रता बल देते थे ।
स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले लोग जबतक भारतीय राजनीति में रहें तबतक अपराधीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ नही हुई थी। लेकिन वर्तमान राजनीति परिदृश्य में चारों ओर अपराधियों की जमघट दिखाई दे रहा है। आज हमारे नेता अपराधिक चरित्र वालों को उच्च पदों पर बैठा रहे है और सज्जनों को अपमान का विष पीना पड़ रहा है। आज के दौर में सभी नेता और राजनितिक दल सत्तालोलुप है। कुर्सी पाना उनका एकमात्र लक्ष्य रह गया है, वे डाकुओं , माफिया ,सरगनाओं एवं अपराधियों को पार्टी टिकट देकर चुनाव लड़वाते है। वे जानते है की जानता उनके भय और आतंक से उन्हें ही वोट देगी। वर्तमान परिदृश्य में कोई एक दल को दोषी ठहराना उचित नही होगा, सभी राजनितिक एक ही थैली के चट्टे बट्टे है। वर्तमान समय में संसद और विधानसभाओं में कई एसे चेहरे दिखाई देते है जिनकी वास्तविक जगह जेल की सलाखों के पीछे होनी चाहिए थी। आज के समय में जब मिली जुली सरकार बन रही है , किसी दल के पास इतना बहुमत नही है किवे अपने दम पर सरकार बना सके,तब वे किसी को भी अपने दल में शामिल करने को तैयार हो जाते है, चाहे वो अपराधी सांसद या विधायक क्यों न हो।
वर्तमान में भारतीय राजनीति कि स्थिति यह है कि अब अच्छे लोग इसमे आना नही चाहते है। राजनीति भरष्टाचार apne चरम पर है। दल बदल के लिए बनाया गया कानून प्रभावी नही हो पा रहा है। आज पैसे के बल पर किसी भी दल के सांसद विधायक को ख़रीदा जा सकता है। राजनीति के अपराधीकरण का परिणाम यह है कि अब संसद और विधानसभावों कि गरिमा घटी है। वहां अब लात घूसे मेज कुर्सी सब चलती है, गाली गलौज एवं मारपीट तो आम बात हो गई है।चुनाव आयोग राजनीति में अपराधीकरण को रोकने के लिए नियम तो बनाए हैं। लेकिन वह भी अबतक इसे रोकने में असमर्थ ही रही है। अपराधियों को संसद और विधान सभाओं में जाने से रोकने के लिए देश कि जानता को जागरूक होना अति आवश्यक है, अगर वे दागी लोगों को वोट न दे तो इससे निजात पाया जा सकता है,और तभी चम्बल के बिहरों के शेर संसद जाने से रोके जा सकेंगे।