12/4/08

झारखंडियों का हितैषी कौन...

झारखण्ड राज्य के निर्माण के बाद से ही यहाँ बाहरी भीतरी को लेकर राजनीती तेज हो गयी। राजनितिक दल इसे वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर ऐसी बयानबाजियां होती रही है जो आपस में खटास पैदा करती रहीं है ।इस समय झारखण्ड में कौन असली झारखंडी है का मामला गर्माया हुआ है । इसका प्रमाण माँगा और दिया जा रहा है। दरअसल पूरे देश में ही इस समय प्रांतवाद का मुद्दा छाया हुआ है।इसकी चपेट में कई राज्यों के आने से तनाव की स्थिति पैदा हो गई है।महाराष्ट्र में पिछले दिनों जो कुछ हुआ इससे सभी के कान खड़े हो गए है। महाराष्ट्र का मामला अभी थमा भी नहीं था कि झारखण्ड में बिहारी-झारखंडी का मामला गरमाने लगा है। इसे हवा दे रहें है खुद राज्य के मुख्यमंत्री और आदिवासिओं के शुभचिंतक शिबू सोरेन। किसी शुबे के मुख्यमंत्री के द्वारा इस तरह का बयान देना कहीं न कहीं शिबू की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है,जिनकी राजनीती केवल आदिवासियों के इर्द गिर्द ही रहती है. यह सही है कि बिना स्थानीय लोगों को साथ लिए किसी राज्य का विकास संभव नहीं हो सकता है. लेकिन क्या बाहरी के नाम पर बिहारियों को निशाने पर रखना उचित है? झारखण्ड में अबतक जितने भी मुख्यमंत्री हुए वे आदिवासियों की कल्याण की बाते करतें रहे है,लेकिन क्या वास्तव में आदिवासियों कल्याण हुआ है .झारखण्ड की सत्ता हमेशा झारखंडी मुख्यमंत्रियों हाँथ में रही,लेकिन न तो आदिवासियों कल्याण हुआ और न ही किसी और का.विकास हुआ तो सत्ता के दलालों का और सत्ता के सुख भोगने वाले राजनेताओं का, जिन्होंने सत्ता में आने के बाद अपना घर भरा,पत्नी और बच्चों को लाखों का गिफ्ट दिया.झारखण्ड के ऐसे कई नेता है जिनके पास कभी तन ढकने के लिए वस्त्र नहीं थे आज उनपर आय से अधिक सम्पति रखने का मामला चल रहा है,औया सभी है झारखण्ड के मिटटी की उपज झारखंडी नेता.एसे में झारखण्ड के मुखिया समेत मंत्री और विधायक का अपने को झारखण्ड का सच्चा हितैषी कहना कितना उचित है,आप खुद सोच सकतें है....

4 comments:

समीर सृज़न said...

सही कहा आपने आकाश. झारखण्ड मे सिस्टम नाम की कोई चीज़ नहीं है. सभी नेताजी अपनी रोटी सेंकने मे ही व्यस्त हैं.. लेकिन समय आने वाला है जब इन नेताओ को जनता जनार्दन के सामने इसका हिसाब देना ही होगा...

राजीव करूणानिधि said...

इन निकम्मों के बारे में कुछ लिखना सिर्फ अपना समय बर्बाद करना है. कुत्ते की दुम है सीधी होने की उम्मीद मुर्खता होगी. क्षेत्रवाद की बयार बहाने वाले ऐसे नेता खुद आदिवासियों की ज़मीन हड़पने पर लगे हुए है. ऐसे कई मुआमले मीडिया के सामने जाहिर हो चुके हैं, पर आवाम भी बेजुबानो की तरह बर्ताव कर रही है, जैसे राजा वैसी प्रजा..

Unknown said...

aap ne behad gambhir mudda uthayea hai,, lekin enka aap ko vikalp dikh raha hai

अखिलेश सिंह said...

sahi likha hai..