देश में जब भी कोई आतंकी हमला होता है तब, सत्ता में रहने वाली सरकार चाहे वह युपीऐ की हो या फ़िर एनडीऐ की सभी के तेवर काफी गर्म हो जाते है। संसद पर हमला हो या मुंबई में ताज पर हमला हो, हर हमले के बाद सत्ता में बैठी सरकार आतंक के खिलाफ जंग को और धारदार बनाने के लिया नए कानून और बिल पेश करती है। संसद पर हमले के बाद जहाँ एनडीऐ ने पोटा जैसे कड़े आतंक विरोधी कानून लोकसभा में पास कराया तो वही मुंबई पर हमले के बाद युपीऐ सरकार ने भी आतंक विरोधी एक नया बिल संसद में पास कराने में सफल हो गई , कभी पोटा का विरोध करने वाली युपीऐ सरकार को आखिरकार आतंक विरोधी कानून बनाने को मजबूर होना ही पड़ा । लोकसभा में पेश किया गया यह बिल राष्ट्रीय जाँच एजेंसी के गठन को लेकर है। बताया गया है की इसके लागूहोने से कई सूधार होंगे। आतंकी गतिविधियों ,सीमापार से घुसपैठ ,उग्रवाद आदि पर लगाम लगने की गुंजाईश बनेगी। इस बिल में यह प्रावधान भी है कि इसके तहत विशेष अदालत में रोज सुनवाई होगी , साथ ही आतंकी गतिविधयों के लिए पैसे एकत्रित करने वाले, आतंकी ट्रेनिंग देने वाले और इनका साथ देने वाले को ताउम्र सलाखों के पीछे भेजा जा सकता है । पोटा कि रट लगाने वाली भाजपा ने भी इसका सम्रथन किया है। कुल मिलकर अगर हम इसका आकलन करें तो क्या केवल मात्र कानून बनने से आतंकी जैसी गतिविधयां समाप्त हो जाएँगी ? क्या भारत में आतंकी गतिविधियाँ रोकने के लिए जो कानून था वह नाकाफी था ?आज देश में टाडा ,मकोका, पोटा , आर्म्ड फोर्स (स्पेशल पावर) एक्ट के रहते इस तरह कि आतंकी गतिविधयों में किस हद तक लगाम लग सका है ? आतंकी घटना पर लगाम मात्र कानून बनने से नही लगने वाला है इसके लिए हमें अपनी मानसिक में बदलाव लाने कि जरुरत है। अगर देश में आतंकी हमले हो रहे है तो इसमे जहाँ सुरक्षा बलों कि चूक जिम्मेवार है वही हमारे राजनेताओं कि ओछी राजनीती भी कम जिमेवार नही है। हालिया वर्षों में दो मामले ने यह साबित कर दिया है कि हमारे देश में कानून बनने वाले लोगों कि जमात को कानून के पालन से ज्यादा चिंता अपने स्वार्थ कि होती है । सुप्रीम कोर्ट से सजा पा चुके अफजल गुरु का मामला हो या साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का मामला हो दोनों ही मामलों में देश कि दो प्रमुख दलों कि कौम विशेष के पार्टी उनकी निष्ठां साफ झलकती है । बहरहाल देश को बाहरी शत्रुओं से बचाए रखने के लिए महज कानून बनने से कुछ भी नही होने वाला बल्कि कानून को बिना भेद भाव के लागु करने से होगा ...
2 comments:
सिर्फ कानून बनाने से अगर काम चलता तो इस तरह के कानून पहले भी बनाए जा चुके हैं. मै आपसे पूरी तरह इत्तेफाक रखता हूँ आकाश. आतंकिओं को अगर मौत का डर होता तो वे इस तरह की घटना को अंजाम देने से पहले परिणाम सोच के ही सहम जाते. इसलिए कानून शख्त करने के बजाये अपनी सुरक्षा व्यवस्था दुरुस्त करने की ज़रुरत है. ताकि ऐसे आतंकी हमारे देश की सीमा में घुस ही नहीं पाए.
kanun banane se crime rukta to 302 ki wazah se hatya nahi honi chahiye thi ...sawal hai in kanuno ko kaise lagu kiya jaa raha hai...
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