8/19/10

यह क्या हो रहा है


मंगलवार देर रात को पंजाब और हरियाणा सी एम निवास के करीब रईसजादियों की रेस ने दो भाईयों की जीवन को खत्म कर दिया. कांसल पिण्ड निवासी साथ वर्षीय हरप्रीत सिंह और इक्कीस वर्षीय सुखविंदर सिंह अपनी मां की दवाई लेकर अपने गांव जा रहे थे. घटना के संबंश में जो जानकारी मिली है उसके अनुसार सेक्टर 2 और 3 के डिवाइडिंग रोड से होकर कांसल जाने के लिए जैसे ही चंडीगढ़ क्लब चौक के पास दोनों भाई अपनी बाईक से पहुंचे उसी वक़्त सुखना लेक की तरफ से
CH 03 R 0018 नंबर वाली
काले रंग की होंडा अकार्ड और PB 65 E 2040 नंबर की सफेद रंग की स्विफ्ट तेजी से वंहा पहुंची. उसी वक़्त
होंडा अकार्ड कार ने दोनो अपनी चपेट में ले लिया टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि दोनों भाई काफी ऊपर उछल गए और तेजी से जमीं पर गिर गए वहीँ उनकी मौत हो गयी.
एक्सीडेंट होते ही युवितयां दुसरी गाड़ी में बैठ कर भाग गई. जब मौके पर पहुंची पुलिस तब लिंगों के घटना के संबंध में बताया कि यह गाड़ी इस इलाके में रासुक रखने वाले
जगविंद्र सिंह कि बेटी कि है जो
दुबई में बिजनेस करते हैं इतना सुनते ही वहां पहुंची पुलिस को जैसे सांप सूंघ गया. वे
जगविंद्र सिंह के घर तो पहुंचे लेकिन अन्दर जाने कि हिम्मत नहीं कर सके क्योंकि यह परिवार रासुक्दार परिवार था
सुखमन के पिता जगविंद्र सिंह दुबई में बिजनेस करतें ही है साथ ही
दादा जीएस बराड़ पूर्व सैन्य अफसर और चाचा बीएस बराड़ रिटायर्ड कर्नल हैं.
इसे में भला पुलिस कि इतनी हिम्मत कहाँ कि वह
सुखमन को गिरफ्तार कर सके. आखिरकार
सुखमन ने दुसरे दिन शाम
4 .35बजे सेक्टर 3 थाने में सरेंडर कर दिया. पुलिस ने पूछताछ के बाद सुखमन के खिलाफ रेश ड्राइविंग का मुकदमा दर्जकर उसे गिरफ्तार कर लिया. बाद में उसे थाने से ही 50 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत पर छोड़ दिया गया.
अब सवाल यह उठता है कि क्या इस
पूरे
मामले में पुलिस ने जिस तरह का रवैया अपनाया क्या वह सही है, क्या कोई साधारण आम भारतीय होता तो क्या इस तरह के जुर्म के लिए उसे इतनी जल्दी जमानत मिल जाती ? क्या पुलिस उसके सरेंडर करने का इंतज़ार करती ? नहीं न, तो फिर सुखमन को दो घंटे के अन्दर ही जमानत क्यों दे दिया गया जिसके कारण एक परिवार के दो चिराग बुझ गए. क्या भारतीय क़ानून में एक ही जुर्म के लिए आम आदमी के लिए अलग और ख़ास आदमी के लिए अलग कानून का प्रावधान है.
मैं अंत में यही कहना चाहुंगा कि भैया यह क्या हो रहा है .....

6/16/10

राजभवन के गमले टूटे + पत्रकार का हाथ टूटा = झारखंड राष्ट्रपति शासन के हवाले





आकाश सिंह

करीब 35 दिनों तक झारखंड में राजनीतिक उठा पटक का दौर चला, नेताओं के साथ साथ पत्रकार भी बेचैन रहे, राजनीतिक हालात की पल पल बदलती तस्वीर जो उनको चैनल को देनी थी. प्रिंट हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया सभी पत्रकारों की दौड़ नेताओं और मंत्रियों के आवासों से लेकर एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशनों तक रही. पत्रकारों की फ़ौज के सामने कभी कभी नेता मेमने की तरह कुलांचे मारते हुए, भागते भी देखे गए तो कभी मीडिया कर्मी आपस में उलझते हुए भी दिखे. बाईट लेने की आपधापी में कई के कैमरे तो टूटे ही वहीं खबरों की टोह लेने में कई पत्रकार भी घायल हुए.

ये तो हुई नेताओं और पत्रकारों के बीच का मामला जो आये दिन होता रहता है. लेकिन अगर महामहिम राज्यपाल के यहां भी यही नजारा देखने को मिले तो वाकई ये शर्मनाक है. हुआ यूं कि राजनीतिक नौटंकी में मदारी के बन्दर की तरह नाचते पत्रकार और मदारी की तरह नचाते नेताओं का राजभवन समर्थन वापस लेने या फिर इस्तीफा देने का सिलसिला कई दौरों तक चला. झारखंड के इस राजनितिक उठापटक के इस दौर में लोकल स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर की खबरिया माध्यमों के पत्रकार इनके पीछे पीछे दौड़ते रहे. क्योंकि खबर हर कीमत पर जो उन्हें देनी थी.
हम आपको पहले बीजेपी के सरकार से समर्थन वापसी के समय हुई घटना के बारे में बता दें. हुआ यूं कि जब बीजेपी सरकार से समर्थन वापसी की गयी तो मीडिया का पूरा हुजूम भी पीछे पीछे दौड़ पड़ा. नेता तो वैसे भी करीब एक महीने से चली आ रही नौटंकी के कारण मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गए थे इसलिए वे पत्रकारों से भागते फिर रहे थे, इसी भाग दौड़ में बीजेपी के नेताओं के राय जानने को बेताब पत्रकारों का हुजूम जब उनकी ओर लपका तो सुरक्षा कर्मियों ने पत्रकारों को पीछे धकेलना शुरू कर दिया फिर क्या था राज भवन के परिसर में रखे गए करीब 15 गमले खबर की भेंट चढ़ गए.
ये तो हुई बीजेपी के समर्थन वापसी के समय की घटना अब शाम के वक़्त गुरूजी यानि तत्कालीन मुख्यमंत्री झारखंड, शिबू सोरेन को राज्यपाल का बुलावा भेजा गया कि आप अब कैसे अपनी सरकार बचायेगे. गुरूजी के राजभवन आने की सूचना सुनकर कुत्ते की नींद में सोने वाले पत्रकारों की आँखे खुल गयी, एक बार फिर मीडिया जगत का पूरा जत्था राजभवन की ओर कूच कर गया. गुरूजी के राज्यपाल से मिलकर बाहर निकलते ही सभी मीडिया बंधु उनपर टूट पड़े. फिर होना क्या था. करीब 21 गमलों की फिर कुर्बानी चढ़ गयी. एक दिन में झारखंड की राजनीति पर राजभवन जैसे सम्मानित स्थल के 36 गमले की बलि चढ़ाई गई.
इस राजनीतिक उठापटक का अंत और भी रोचक है, हुआ यूं की जब गुरूजी को लगा की अब सरकार तो मेरी बचेगी नहीं सो उन्होंने शक्ति परीक्षण से एक दिन पहले यानि 30 मई को अपना इस्तीफा देने राजभवन पहुंचे उस दिन भी वही हुआ जो पहले होता आया था पत्रकारों और नेताओं के चूहे बिल्ली के खेल में 9 गमले और टूटे, तो कुल मिलाकर 45 गमलों ने झारखंड की बलखाती राजनीति में अपना जीवन न्योछवर कर दिया.
तो भैया जब राजभवन का इतना नुकसान हुआ तो इसकी भरपाई के लिए सजा तो आखिर किसी न किसी को मिलनी ही थी, और सजा मिली भी, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रघुवर दास जब राज्यपाल से मिलकर निकल रहे थे तब रीजनल न्यूज़ चैनल के एक वरिष्ठ पत्रकार ने रघुवर जी से राज्यपाल से मिलने के विषय के बारे में जानकारी लेनी चाही और अपना माइक गाड़ी में बैठ चुके रघुवर दास के खिड़की से अन्दर कर दिया , झारखंड की राजनीति में अचानक फर्श से अर्श पर पहुंचे और बौखलाए तत्कालीन उप मुख्यमंत्री महोदय ने बिना कुछ बोले गाड़ी का पावर विंडो बंद कर दिया जिसकी वजह से खिड़की से अन्दर अपना हाथ डाले संवाददाता महोदय का हाथ शीशे से दब गया और हाथ फ्रैक्चर हो गया.
फिर अगले दिन महामहिम की सिफारिश पर झारखंड में राष्ट्रपति शासन लग गया. तो देखा बंधुवर कैसे गमले की बलि के साथ पत्रकारों को चोट लगी और झारखंड को राष्ट्रपति शासन का मुंह देखना पड़ रहा है.